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श्रद्धेय अटल जी को समर्पित कविता: “मैं भी चला”

 Atal Bihari Vajpayee
मैं भी चला, वो भी चले, हम सब चले।
हिंदू चले, मुस्लिम चले, भारत के सब नागरिक चले।
मैं रोया, वो रोया, हम सब रोए।

 Atal Bihari Vajpayee
वन्दे मातरम्  के नारे गूंजे, भारत माता की आवाज़ दिल में लिए हम सब चल पड़े।
सफर लंबा था, अधूरा था, बेचैनी थी, दर्द था।
अटलजी की कविताएं गूंज रही थीं, उनके प्राणों के अंतिम दर्शन जन सैलाब कर रहा था।
अटल बिहारी अमर रहे सबके दिल की आवाज़ थी।
बच्चे थे, बूढ़े थे, महिलाएं थीं, पुरुष थे सब थे।
प्राणों के अंतिम संस्कार हुए पर विचारों के नहीं।

 Atal Bihari Vajpayee
लेकर चलते सबको साथ, करते थे राष्ट्र की बात।
ले गए ऐसे निर्णय जिसने रख दी नींव नए भारत की।
नए भारत की नींव में बनाईं सड़के, चलाया सर्व-शिक्षा अभियान,
थे वह सरल, पर सख्त देशभक्त ।
पोखरण से बनाया देश को सर्वशक्तिमान।
कारगिल से बचाई देश की आन बान और शान।

 Atal Bihari Vajpayee
मैं भी चला,
मैं भी चला, वो भी चले, हम सब चले।
चलते चलते याद आयी अटल की बानी,
देश प्रथम है, दे दो इसके लिए कुर्बानी।
उनकी राह पर चलने को हम सबने ठानी, जीवन में थी जिन्होंने कभी भी हार न मानी।
“हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा।”

 Atal Bihari Vajpayee
मौत भी जिनके आगे हुई पानी-पानी।
फिर भारत ने दोहराई अटल की बानी
“आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ”

श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी को समर्पित

– प्रदीप भंडारी

(फाउंडर जन की बात)

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Sombir Sharma
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Sombir Sharma - Journalist

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