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जिग्नेश मेवानी का किसी भी पोलिटिकल पार्टी को ज्वाइन करने से साफ इंकार, देखिये ‘जन की बात’ के साथ उनकी ख़ास बातचीत

ओढव, अहमदाबाद में दलित नेता जिग्नेश मेवानी एक सभा को सम्बोधित करने के लिए मौजूद थे, हमारे CEO प्रदीप भंडारी ने उनसे ख़ास बातचीत की, जिसका सार हम आपके सामने पेश कर रहे हैं.

जन की बात‘ टीम ने गुजरात में जब अपनी चुनावी यात्रा शुरू की थी तो हमारे जेहन में एक बात बहुत गहरायी से बैठी थी और वो यह थी की इस बार गुजरात का चुनाव अन्य चुनावों से काफी अलग होने जा रहा है. 2017 का विधानसभा चुनाव महज़ एक चुनाव नहीं, आर या पार की लड़ाई है और वास्तव में यह वो गुजरात राज्य है जहाँ के सबसे प्रसिद्द मुख्यमंत्री गुजरात मॉडल की सीढ़ियां चढ़ते हुए आज दिल्ली की गद्दी पर जा बैठे हैं , और उनके सिपहसालार प्रदेश में आज भी उनकी विकास की गाथा गाते हैं. चुनावी माहौल में सब कुछ दांव पर लगा है, जहाँ नजरें घूम जाएँ वहीँ देखने को मिलता है की सभी पुराने चुनावी हथियारों की धार तेज़ की जा रही है क्यूंकि सभी की आबरू इस अग्निपरीक्षा में शामिल हो चुकी है और सभी अंतिम फैसले के इंतज़ार में है.

ऐसे माहौल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी तक गुजरात के चुनाव की पुरजोर तैयारी में हैं. लेकिन इन दोनों के बीच जो फासला है या यूँ कहा जाए की अबकी बार सत्ता की कुर्सी और जीतने वाली पार्टी के बीच जो फासला है उसमे 3 युवा डटकर खड़े हैं और हमारी जमीनी स्तर की रिपोर्टिंग में यह बात बहुत हद तक साफ़ हुई है की यह 3 युवा इस बार के विधानसभा चुनाव में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका में हो सकते हैं. इस तिकड़ी जिसमे पाटीदार नेता हार्दिक पटेल,दलित नेता जिग्नेश मेवानी और OBC नेता अल्पेश ठाकोर शामिल हैं, उनपर न सिर्फ गुजरात की बल्कि पूरे देश की निगाहें टिकी हैं और अब देखना यह होगा की प्रदेश में राजनैतिक हवा किस ओर का रुख करती है.

जन की बात‘ के CEO प्रदीप भंडारी आज जब इस तिकड़ी के एक अहम् सदस्य जिग्नेश मेवानी से मुखातिब हुए तो उन्होंने उन विषयों पर तीखे सवाल किये जिन्हे मेनस्ट्रीम मीडिया उठाने से बचता रहा है. हम आपको रूबरू कराएँगे उस बातचीत से और कोशिश करेंगे की जिग्नेश मेवानी और प्रदीप भंडारी की उस अहम् बातचीत के संक्षेप में राजनैतिक भावार्थ समझ सकें. पेश है उस बातचीत के अंश:-

मैं कांग्रेस या किसी पोलिटिकल पार्टी के साथ नहीं जा रहा हूँ

१- क्या आप कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं?

मेवानी ने यह साफ़ किया की वो ‘कांग्रेस को किसी प्रकार का समर्थन नहीं दे रहे हैं‘ और न ही वो किसी अन्य पार्टी के पक्ष में खड़े हैं. उनका कहना था की उनका आंदोलन सत्ता के खिलाफ है और वो चुनाव में प्रत्येक पार्टी को एक ही निगाह से देखते हैं और उनके लिए मुद्दा यह है की 182 सीटों पर लड़ने वाली पार्टियां दलितों का किस प्रकार उत्थान करने वाली हैं. उन्होंने यह भी साफ़ किया की वो हर पार्टी से लगातार पूछ रहे हैं की जो दलितों को उनका हक़ 22 साल में भारतीय जनता पार्टी ने नहीं दिया वो उनकी पार्टी किस प्रकार से देने वाली है.

२- अगर भाजपा आपकी वही मांगें पूरी करने को तैयार हो जाती है, तो क्या आप उन्हें समर्थन देंगे?

मेवानी ने इसका उत्तर देते हुए कहा की हमारी मांगें भाजपा ने अपने २२ सालों में कभी पूरी नहीं की, जबकि उन्होंने वादे बहुत किये लेकिन जहाँ तक वादों को पूरा करने का सवाल है, भाजपा उससे बचती रही है. इम्प्लीमेंटेशन के सवाल पर मेवानी ने कहा की जमीन अगर उद्योगों के लिए आवंटित की जा सकती है तो दलितों के लिए क्यों नहीं? इस सरकार के प्रति रोष जताते हुए उन्होंने कहा की भाजपा का रवैया दलित विरोधी रहा है. उन्होंने साफतौर पर कहा की अगर दलितों को जमीन आवंटित होगी और उनका विकास होगा तो यह प्रदेश में एग्रीकल्चर और इंडस्ट्रीज के लिए भी फायदे की बात होगी.

३- पाटीदार की आरक्षण की मांगों को दलितों और OBC का खास समर्थन नहीं मिल रहा है, और आप तीनो (हार्दिक, जिग्नेश, अल्पेश) के मुद्दों में आपसी टकराव की सम्भावना भी है, उसके बारे में क्या कहेंगे?

मेवानी ने बहुत साफगोई से इस बात को स्वीकारा की उनमे, हार्दिक और अल्पेश में टकराव/contradictions हैं और वह रह सकते हैं लेकिन अहम् बात यह है की उन तीनो का टकराव भाजपा सरकार से और उनके गुजरात मॉडल से है और अंततः हम तीनो ही नेताओं के समुदाय के लोग इस मॉडल के भुक्तभोगी हैं.

४- आपकी राय में गुजरात में विकास का नामोनिशान नहीं है लेकिन हमने युवाओं से बातचीत में यह पाया की उन्हें लगता है की गुजरात में विकास हुआ है, इस विरोधाभास को कैसे समझायेंगे?

मेवानी ने गुजरात की अस्मिता को मुद्दा बनाते हुए कहा की उद्योगपति गुजरात की अस्मिता नहीं हैं, यहाँ के किसान और मजदूर हैं और विकास अगर होना है तो किसानो और मजदूरों का होना चाहिए लेकिन गुजरात में सिर्फ मुट्ठीभर उद्योगपतियों का विकास हुआ है, जरूरतमंदों का नहीं. उनका कहना था की विकास का फल हर किसी तक पहुंचा ही नहीं.

५- अगर बीजेपी सत्ता में वापस आती है और आप की हार होती है तो क्या आप इसे अपने आंदोलन की नैतिक हार मानेंगे?

भाजपा की जीतने की स्तिथि में भी हमारा यह आंदोलन चलता रहेगा और इस देश में ऐसे आंदोलन तबतक चलेंगे जबतक अस्पर्श्यता, जातिवाद, शोषण और दलितों के खिलाफ अत्याचार न खत्म हो जाये.

६- भाजपा के सत्ता से बाहर जाने और किसी अन्य पार्टी के सत्ता में आने पर आपकी क्या भूमिका रहेगी, क्या आंदोलन तब भी चलेगा?

हमारी लड़ाई जारी रहेगी, और जहाँ भी असमानता, अत्याचार या संविधान से खिलवाड़ होगा हम आवाज़ उठाएंगे.

 

जन की बात‘ पर हम न केवल मुद्दों को उठाते हैं बल्कि उनपर संक्षेप में विचार रखने की भी कोशिश करते हैं. जिग्नेश मेवानी का अपने आप में यह पहला कथन है की वो कांग्रेस या कोई अन्य पोलिटिकल पार्टी ज्वाइन नहीं कर रहे हैं और इस फैसले के कई मायने हैं. हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवानी एक ही विचारधारा की नाव में सवारी कर रहे हैं, उनका यह मानना है की किसी पार्टी के साथ जुड़कर उन्हें अपने आंदोलन एवं अपने समुदाय के लोगों पर से पकड़ ढीली पड़ जाने का भय है, चूँकि गुजरात में कांग्रेस भी बहुत मजबूत दिखती नजर नहीं आ रही इसलिए दोनों ही युवा प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस के समर्थन में नहीं आ रहे हैं. हालाँकि, यह धीरे धीरे साफ़ हो गया है की दोनों ही युवा भाजपा को हारने के लिए अपने समुदाय के लोगों को प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यानि की कांग्रेस को वोट देने की अपील कर सकते हैं.

हमारी यह चुनावी यात्रा जारी रहेगी, जुड़े रहें.

 

– यह स्टोरी स्पर्श उपाध्याय ने की है.

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